भगवान बुद्ध , खुद की पहचान करो
खुद की पहचान करो :- तथागत यह भी कहते थे कि सबसे पहले व्यक्ति को खुद की पहचान करनी चाहिए । दूसरों की बजाय व्यकित खुद के बारे में ज्यादा जानता है। उनका मत था कि बुराई से घृणा करो, बुरे व्यक्ति से नहीं।
एक बार की बात है, किसी गाँव के पास बहती नदी के किनारे बुद्ध बैठे थे। किनारे पर पत्थरों की भरमार थी, पर छोटी सी वह नदी अपनी तरल धारा के कारण आगे बढ़ती ही जा रही थी। बुद्ध ने विचार किया कि यह छोटी सी नदी अपनी तरलता के कारण कितनों की प्यास बुझाती है, लेकिन भारी-भरकम पत्थर एक ही स्थान पर पड़े रहते हैं और दूसरों के मार्ग में बाधक बनते रहते हैं। इस घटना की सीख यह है कि दूसरों के रास्ते में रोड़े अटकानेवाले खुद कभी आगे नहीं बढ़ पाते। परंतु जो दूसरों को सद्भाव और स्नेह देता है, वह स्वयं भी आगे बढ़ जाता है।
बुद्ध ऐसे ही विचारों में मगन थे कि तभी उन्होंने ग्रामीणों की एक भीड़ को अपनी ओर आते देखा | बड़ा शोर था और लोग किसी युवती के प्रति अपशब्द बोल रहे थे। तथागत ने देखा कि लोग एक युवती को घसीटकर ला रहे थे और उसको गाली भी दे रहे थे। भीड़ के नजदीक आने पर बुद्ध ने लोगों से युवती को पीटने और अपशब्द कहने का कारण पूछा। लोगों ने कहा कि यह स्त्री व्यभिचारी हैं और हमारे समाज का नियम है कि यदि व्यभिचारी स्त्री पकड़ी जाए, तो उसे पत्थरों से कुचलकर मार डालना चाहिए।
तथागत ने युवती की ओर देखा और कहा, “जो तुम चाहते हो, वही करो। पर मेरी एक शर्त है कि पत्थर मारने का अधिकारी वही है, जिसने कभी व्यभिचार न किया हो और न ही उसके मन में ऐसे विचार कभी आए हों। इतना कहकर तथागत शांत हो गए। चारों ओर मौन था। कुछ समय बाद लोगों की भीड़ मन में पश्चात्ताप का भाव लिए हुए वहाँ से विदा हो गई।
इस घटना से यही सत्य उभरता है कि हम खुद अपने प्रति न्याय कर सकते हैं, दूसरों के प्रति नहीं, क्योंकि हमारी जानकारी दूसरों के विषय में अधूरी होती है। यदि हम किसी के प्रति न्याय करना चाहते हैं, तो उसे ऐसा प्यार और स्नेह मिलना चाहिए कि खुद ही अपने दोषों को स्वीकार कर ले और उन्हें पुनः न दोहराने का व्रत ले।